Dosto bahut saal baad yaha aana hua, maufee chahta hoon , ek nayi ghazal le kar haazir hua hoo, ek dum simple si hai...kuchh dino pehle raste se jaa raha tha to sadak/ raste par gulab pada mila , maine utha liya aur kuchh likha hai,
Gaur farmaiyega
रास्ते भी गुलाब देते है
होसलो को रुआब देते है
ढल गया है तेरे नगर, सूरज
हम नया आफताब देते है
चांद सी जो सुरत बचानी है
झुृल्फ का फिर नकाब देते हैं
चांद को हो गया बहुत गुमां
रूख से तेरे जवाब देते है
इस कदर है प्यास का मंजर
पास आ कर सराब देते है
जान के खुशी हुइ यूं,मुझको
दोस्तों मे वो इंतिखाब देते है
Regards
Manish Acharya
Raste bhi gulaab dete hai
Moderator: Muzaffar Ahmad Muzaffar